Thursday, April 9, 2015

बृहस्पति और शुक्र दो ग्रह हैं जो पुरूष और स्त्री का प्रतिनिधित्व करते हैं! - Jupiter & Venus are the two main planetes which decides the marrital harmony in a person's life

मुख्य रूप ये दो ग्रह वैवाहिक जीवन में सुख दु:, संयोग और वियोग का फल देते हैं!

बृहस्पति और शुक्र दोनों ही शुभ ग्रह सप्तम(7th) भाव जीवन साथी का घर होता हैं! इस घर में इन दोनों ग्रहों की स्थिति एवं प्रभाव के अनुसार विवाह एवं दाम्पत्य सुख का सुखद अथवा दुखद फल मिलता हैं! पुरूष की कुण्डली में शुक्र ग्रह पत्नी एवं वैवाहिक सुख का कारक होता हैं! और स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति ये दोनों ग्रह स्त्री एवं पुरूष की कुण्डली में जहां स्थित होते हैं और जिन स्थानों को देखते हैं उनके अनुसार जीवनसाथी मिलता हैं! और वैवाहिक सुख प्राप्त होता हैं!

ज्योतिषशास्त्र का नियम है कि बृहस्पति जिस भाव में होता हैं उस भाव के फल को दूषित करता है! और जिस भाव पर इनकी दृष्टि होती है! उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल प्रदान करते हैं! जिस स्त्री अथवा पुरूष की कुण्डली में गुरू सप्तम भाव में विराजमान होता हैं उनका विवाह या तो विलम्ब से होता है! अथवा दाम्पत्य जीवन के सुख में कमी आती है!पति पत्नी में अनबन और क्लेश के कारण गृहस्थी में उथल पुथल मची रहती है! 

दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने में बृहस्पति और शुक्र का सप्तम भाव और सप्तमेश से सम्बन्ध महत्वपूर्ण होता है! जिस पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह शुक बृहस्पति से युत या दृष्ट होता! उसे सुन्दर गुणों वाली अच्छी जीवनसंगिनी मिलती है!इसी प्रकार जिस स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह बृहस्पति शुक्र से युत या दृष्ट होता है! उसे सुन्दर और अच्छे संस्कारों वाला पति मिलता है! शुक्र भी बृहस्पति के समान सप्तम भाव में सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है!

सप्तम भाव का शुक्र व्यक्ति को अधिक कामुक बनाता है! जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध की संभावना प्रबल रहती है! विवाहेत्तर सम्बन्ध के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश के कारण गृहस्थ जीवन का सुख नष्ट होता है! बृहस्पति और शुक्र जब सप्तम भाव को देखते हैं अथवा सप्तमेश पर दृष्टि डालते हैं तो इस स्थिति में वैवाहिक जीवन सफल और सुखद होता है!लग्न में बृहस्पति अगर पापकर्तरी योगवव से पीड़ित होता है! तो सप्तम भाव पर इसकी दृष्टि का शुभ प्रभाव नहीं होता है! ऐसे में सप्तमेश कमज़ोर हो या शुक्र के साथ हो तो दाम्पत्य जीवन सुखद और सफल रहने की संभावना कम रहती है!

Astrologer Manoj Sahu Ji (Lal Kitab Expert)
ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषज्ञ)
Contact: 9039636706, 8656979221
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सबसे खतरनाक बिमारी है डायबिटीज और इसका समाधान यह भी है - Chants to cure diabetes

सबसे खतरनाक बिमारी है डायबिटीज और इसका समाधान यह भी है

डायबिटीज रोग कैसा होता है, यह तो इससे पीड़ित रोगी ही अच्छी तरह समझ सकते हैं। दिखने में तो यह सामान्य है, लेकिन जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है, तो व्यक्ति अनेक प्रकार की बिमारियों से घिर जाता है तथा मृत्यु के समान कष्ट पाता है। इसी कारण इसको खतरनाक बिमारी कहा गया है।

आप इस रोग का पूर्ण समाधान प्राप्त कर सकते है, यदि आप दवाओं के साथ साथ इस प्रयोग को भी संपन्न कर लें। रविवार के दिन पूर्व दिशा की ओर मुख कर सफेद आसन पर बैठ जाएं। सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करे तथा गुरूजी से पूर्ण स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात सफेद रंग के वस्त्र पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर 'अभीप्सा' को स्थापित करे दें, फिर उसके समक्ष १५ दिन तक नित्य मंत्र का ८ बार उच्चारण करें -

मंत्र
॥ ॐ ऐं ऐं सौः क्लीं क्लीं ॐ फट ॥

प्रयोग समाप्ति के बाद 'अभीप्सा' को नदी मैं प्रवाहित कर देन
स्वास्थ्य प्राप्ति मन्त्र
अच्युतानन्द गोविन्द
नामोच्चारण भेषजात ।
नश्यन्ति सकला रोगाः
सत्यंसत्यं वदाम्यहम् ।।
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ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी
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मो. 9039636706 - 8656979221
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Wednesday, April 8, 2015

****** || शंका समाधान विषय || ******

.....क्या वाकई हनुमान जी बन्दर थे?
.....क्या वाकई में उनकी पूंछ थी ?


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नमस्कार दोस्तों,
मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषज्ञ) आप सभी को कुछ शास्त्रो से जुडी बाते बताना चाह रहा हूँ गौर कीजियेगा। हो सके तो पसंद आने पर लाइक - कॉमेंट्स देकर आशीर्वाद जरूर दे।
ऋषि दयानन्द कहते है की असत्य का त्याग और सत्य को धारण करना ही धर्म है।
वाल्मीकि रामायण जो की रामजी के जिवन का मुल व प्रमाणीक ग्रंथ है बाकी सभी रामायण वो उसी को आधार बनाकर के लिखी गई है चाहे वह लसिदासजी कदम्बजी या कीसी और अन्य विद्वान के द्वारा लिखी गई हो।
दोस्तों, वाल्मीक रामायण के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम चन्द्रजी महाराज के पश्चात परम बलशाली वीर शिरोमणि हनुमानजी का नाम स्मरण किया जाता हैं। हनुमानजी का जब हम चित्र देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में चित्रित किया गया हैं जिनके पूंछ भी हैं।
हमारे मन में प्रश्न भी उठते हैं की इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम लेकर परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।
दोस्तों, आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते हैं - सर्वप्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते हैं।
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🌑 दोस्तों, सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते हैं की वानर का अर्थ होता हैं बन्दर परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता हैं वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला।
जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते हैं उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते हैं। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।
🌑 दोस्तों, सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते हैं उसमें उनकी पूंछ दिखाई देती हैं, परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती?
नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र हैं।
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🌑 किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्रजी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्रजी लक्ष्मण से बोले -
..........न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
..........न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ||
४-३-२८ “ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं हैं तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया हैं। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती हैं”।
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🌑 दोस्तों, सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले हनुमानजी सोचते हैं “यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी।
मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ करदेगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।” इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद, व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।
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🌑 हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।
बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य कोठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान।
चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता। भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकता हैं?
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🌑 अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था की “सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण हैं। जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता।”
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🌑 दोस्तों, किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये। किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।
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🌑 जहाँ तक जटायु का प्रश्न हैं वह गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ – हे आर्य जटायु !
यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा हैं ।
सन्दर्भ-अरण्यक 49/38
......जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथवत् |
......अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || ४९-३८
......कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
......सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम|| ६८-६
यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं। मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषज्ञ) आप सभी को बताना चाहता हूँ की यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा -मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु हैं
सन्दर्भ - अरण्यक 50/4
......(जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः | 50/4)
यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य का राजा नहीं हो सकते।
इन प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की जटायु पक्षी नहीं था अपितु एक मनुष्य था जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में वास कर रहा था।
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🌑 दोस्तों, जहाँ तक जाम्बवान के रीछ होने का प्रश्न हैं। जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे तब किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के पास गये तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था।
सन्दर्भ युद्ध कांड सर्ग-74/31-34 आपत काल में
बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता हैं और युद्ध जैसे काल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से,पूछा जाता हैं। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं दूसरे बुद्धि से परे की बात हैं।
इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धि पूर्वक पढने के पश्चात कौन मान सकता हैं की हनुमान, बालि, सुग्रीव आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य न होकर बन्दर आदि थे। यह केवल मात्र एक कल्पना हैं और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन हैं।
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मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषज्ञ) आप सभी को बताना चाहता हूँ की कुछ मुर्ख हनुमानजी आदी को बन्दर सिद्ध करने के लिऐ "डार्विन के सिद्धांत" का भी तर्क देते है, तो उन अक्ल के अन्धो को बता देना चाहता हु की "डार्विन के सिद्धांत" को उसके ही देश मे नही पडाया जात वहा भी उसे कोरी गप्प करते है । डार्विन के सिद्धांत के बारे मे अधीक जानने हेतु,नजदीकी आर्य समाज मे जाकर के "वेदीक समप्ती" नामक पुस्तक पड लेना जिसमे "भारत की विश्व भर को विज्ञान के श्रेत्र मे दी गई देन" व डार्विन जेसे गप्पेबाज वेज्ञानिको के गप्पो की विस्तार से पोल-खोल रखी है।
अगर भारतिय जनमानस मे फेले अंधविश्वास, पाखंढ व मिथको की पोल-खोल करके पुन: धरति पर "वेदीक युग" "रामराज्य" की स्थापना करने के फलस्वरूप समाज मुजे भी ऋषि दयानन्द की तरह 16-16 बार जहर देकर के मारना चाहेगी तो मे मरना स्वीकार करूगा लेकीन अपने "वेदीक धर्म"को मिटने नही दुंगा ।
|| सत्य सनातन वेदीक धर्म की जय ||
लोट चलो वेदो की ओर —
धन्यवाद दोस्तों इस लेख को पढ़ने के लिए, ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ और Like करे इस पेज को ताकि आपको नई जानकारी मिलती रहे।
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.......................................ज्योतिष मेरी नजर में,
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ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी
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Saturday, April 4, 2015

हनुमान जयंती Hanuman Jyanti

हनुमान जयंती व शनिवार के शुभ योग में आप शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए भी कुछ विशेष उपाय कर सकते हैं। ये उपाय इस प्रकार है

1. शनिवार को शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं।

2. शनिवार को बंदरों और काले कुत्तों को बूंदी के लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो सकता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।

3. शनिवार के एक दिन पहले पहले काले चने पानी में भिगो दें। शनिवार को ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले कपड़े में बांधकर मछलियों के तालाब में डाल दें। यह उपाय पूरा एक साल करें। इस दौरान
भूल से भी मछली का सेवन न करें।

4. शनिवार को अपने दाहिने हाथ के नाप का उन्नीस हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको माला की भांति गले में पहनें। इस प्रयोग से भी शनिदेव का प्रकोप कम होता है।

5. शनिवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद सवा किलो काला कोयला, एक लोहे की कील एक काले कपड़े में बांधकर अपने सिर पर से घूमा कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें और किसी शनि मंदिर में जाकर शनिदेव से प्रार्थना करें।

6. शनिवार को एक कांसे की कटोरी में तिल का तेल भर कर उसमें अपना मुख देख कर और काले कपड़े में काले उड़द, सवा किलो अनाज, दो लड्डू, फल, काला कोयला और लोहे की कील रख कर डाकोत (शनि का दान लेने वाला) को दान कर दें। ये उपाय प्रत्येक शनिवार को भी कर सकते हैं।

7. शनिवार को इन 10 नामों से शनिदेव का पूजन करें-
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।

अर्थात: 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।

8. लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कर शनिवार को पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
(Astrologer Manoj Sahu Ji )

9. शनिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें व उसकी पंचोपचार से विधिवत पूजन करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे किसी एक मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा शनिदेव से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। यदि प्रत्येक शनिवार को इस मंत्र का इसी विधि से जाप करेंगे तो शीघ्र लाभ होगा। वैदिक मंत्र- ऊं शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्योरभिस्त्रवन्तु न:। लघु मंत्र- ऊं ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नम:।

10. शनिवार को सवा-सवा किलो काले चने अलग-अलग तीन बर्तनों में भिगो दें। इसके बाद नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर शनिदेव का पूजन करें और चना को सरसो के तेल में छौंक कर इनका भोग शनिदेव को लगाएं और अपनी समस्याओं के निवारण के लिए प्रार्थना करें। इसके बाद पहला सवा किलो चना भैंसे को खिला दें। दूसरा सवा किलो चना कुष्ट रोगियों में बांट दें और तीसरा सवा किलो चना अपने ऊपर से उतारकर किसी सुनसान स्थान पर रख आएं। यह उपाय करने से शनिदेव के प्रकोप में अवश्य कमी होती है

11. शनिवार को भैरवजी की उपासना करें और शाम के समय काले तिल के तेल का दीपक लगाकर शनि दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।
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खग्रास चन्द्र ग्रहण

नमस्कार दोस्तो,
मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषञ) की ओर से एक छोटी सी कोशिश :
(भूभाग में ग्रहण का समय: दोपहर ३-४५ से शाम ७-१५ तक )  भगवन वेदव्यासजी कहते है की सामान्य दिन से
चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना, यदि गंगा-जल पास में हो तो
एक करोड़ गुना फलदायी होता है ।

भूभाग में ग्रहण प्रारम्भ - दोपहर 3-45, समाप्त - शाम 7-15 तक ।
वेध (सूतक) – सुबह 6-45 से चालु है। अशक्त, वृद्ध, बालक, गर्भिणी तथा रोगी के लिए सुबह 11 बजे से वेध (सूतक) चालु है ।

ग्रहण के समय करणीय-अकरणीय नियम

१) ‘देवी भागवत’ में आता है :
‘सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करनेवाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुन्तुद’ नरक में वास करता है। फिर वह उदर-रोग से पीड़ित मनुष्य होता है । फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है

२) सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (१२ घंटे) पूर्व और चन्द्रग्रहण में तीन प्रहर (९ घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए । बूढे, बालक और रोगी डेढ प्रहर (साढे चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं । ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए ।

३) ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए ।

४) ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए । स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं ।

५) ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए ।

६) ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है ।

७) ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए ।

८) ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीडा, स्त्री-प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढी होता है । गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए ।

९) भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं :  ‘सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है ।  यदि गंगा-जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड गुना फलदायी होता है ।’

१०) ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
कुछ मुख्य शहरों में ग्रहण के पुण्य काल प्रारम्भ का समय नीचे दिया जा रहा है । पुण्य काल समाप्ति सभी स्थानों का ग्रहण समाप्ति (शाम 7-15) तक रहेगा ।
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अहमदाबाद – शाम 6-54 से,
सूरत – शाम 6-53 से,
मुम्बई – शाम 6-52 से,
हैदराबाद – शाम 6-28
से, दिल्ली – शाम 6-38 से,
कलकत्ता – शाम 5-49 से,
नागपुर – 6-27 से,
जयपुर – 6-43 से,6
रायपुर – 6-16 से,
पुरी – 5-58 से,
चंडीगढ़ – शाम 6-41 से,
इन्दौर – शाम 6-41 से,
उज्जैन – शाम 6-41 से ,
जबलपुर – शाम 6-24 से,
जोधपुर – शाम 6-55 से,
लुधियाना – शाम 6-45 से,
अमृतसर – शाम 6-50 से,
जम्मू – शाम 6-50 से,
लखनऊ – शाम 6-22 से,
कानपुर – शाम 6-24 से,
वाराणसी – शाम 6-13 से,
इलाहबाद – शाम 6-17 से,
पटना – शाम 6-04 से,
राँची – शाम 6-02 से,
नासिक – शाम 6-48 से,
औरंगाबाद – शाम 6-42,
वड़ोदरा – शाम 6-52,
बैंगलोर – शाम 6-29 से,
चेन्नई – शाम 6-18 से,
देहरादुन – 6-36 से,
हरिद्वार– 6-35तक

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Friday, April 3, 2015

पार्वती हठ

पार्वती हठ ........
महादेव के लिए
‘हठ न छूट छूटै बरु देहा’
जन्म कोटि लागि रगर हमारी।
बरउँ सम्भु न त रहउँ कुँआरी।
‘तजउँ न नारद कर उपदेसू।
आपु कहहिं सत बार महेसू।।’
‘गुरु के वचन प्रतीति न जेही।
सपनेहु सुगम न सुख सिधि तेही।


हठ नहीं छूटेगा, शरीर भले ही छूट जाय करोड़ों जन्म तक हमारी यही टेक है कि शंभु का वरण करूँगी अन्यथा कुमारी रहूंगी ।मैं नारद का उपदेश नहीं त्याग सकती। भगवान् शिव भी स्वयं आकर सौ बार कहें तब भी मैं नहीं छोड़ूँगी। गुरु के वचनों पर जिसे विश्वास नहीं है उसे स्वप्न में भी न सुख है, न सिद्धि ही है।

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Thursday, April 2, 2015

=-=-=-=-मंगल देव-=-=-=-=

मैं (ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी) आप लोगों को मंगल देव के विषय में कुछ जानकारी देना चाहता हूँ।

सबसे पहले आप सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार, दोस्तों, ध्यान देने की बात है की मंगल कब अच्छे और कब ख़राब हो जाते हैं। जब मंगल का सम्बन्ध केतु या बुध के साथ हो जाये चाहे बो एक साथ हों या दृस्टि से मिल रहे हों तो भी मंगल का फल ख़राब हो जाता है। जब सूर्य और शनि मिल जाते हैं तब भी मंगल बुरे हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार से मंगल के गुण अवगुण में बदल जाते हैं।fb पर पूरी बात बताना सम्बभ नहीं है।


लेकिन जब मंगल देव अच्छे होते हैं तो क्या सुख मिलते हैं।पूर्ण पराक्रमी अच्छी हिम्मत बाला बिलकुल हनुमान जी की तरह जिसके साथ लग जाये उसके लिए अपना बलिदान तक दे दे।
एक दम सीधा साधा इंसान ज्यादा चंट चालक नहीं होता। मंगल अच्छे तो भाई यार दोस्तों के लिए पूरा सहायक और बो भी ऐसे व्यकित के लिए पूर्ण समर्पित होते हैं। और सबका पूरा सहयोग (सपोर्ट) भी मिलती है। जीवन में कभी खून से सम्बंधित बीमारी नहीं होती। 15 साल की उम्र से हालात अच्छे होने शुरू हो जाते हैं।28 से 33 साल की उम्र में पूरी तरह से ऊंचाइयों को पा लेता है।


घर में मंगल कारज जल्दी जल्दी होते हैं। दोस्तों, घर के बच्चों के शादी व्याह सही समय पर होते हैं।
लेकिन दोस्तों, अगर मंगल देव आपकी कुंडली में नीच के बद होके अर्थात ख़राब हो के बैठे हो तो घर का माहौल अच्छा नहीं होता भाई भाई में दुश्मनी हो जाती है।माँ बाप ही बच्चों में बिगड़बाते हैं। आपस में घर के सदस्य एक दुसरे से जलते हैं। 15 साल की उम्र से बच्चा बिगड़ना शुरू कर देता है।पढ़ाई लिखाई चौपट ।कँही भी टिकता नहीं।धैर्य कम हो जाता है। भटकाव बढ़ने लगता है। किसी पर विषबास् नहीं करता। बुरी सोहबत में पड़ जाता है। बुरे यार दोस्तों के साथ घूमता फिरता है और फालतू के झगड़े करता है। भाई भाई में भी लड़ाई झगड़े होते हैं जो दुनिया देखती है| जीवन में अस्थिरता बनी रहती है। आस पड़ोस के लोगों से भी अनबन का माहौल रहता है।घर में खुशियों का माहौल नहीं बन पाता ।शादी व्याह बड़ी उम्र में होते हैं। एक बात और ऐसे हालात में 28 से 33 साल की उम्र के बीच परिवार टूटते हैं। 


में एक प्रोफेसनल Astrologer हूँ। दोस्तों, मैं (ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी) अपना पूरा समय एस्ट्रोलॉजी को देता हूँ। अगर आप लोग अपनी कुंडली दिखाना चाहते हैं। या लाल किताब एस्ट्रोलॉजी सीखना चाहते हैं तो सम्पर्क कर सकते हैं !


दोस्तों आज ही अपनी कुंडली दिखाकर जानने की कोशिश करो आखिर क्या चीज है जो आप को नहीं करनी चाहिए और क्या करनी चाहिए.. वरना जिंदगी रुला देगी...आदतो को सुधार लो, आप हमेशा मुझे ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी को हमेशा याद करेंगे।
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मैं सिर्फ आपसे इतना कहना चाहता हु की अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिष को दिखाए या फिर मुझे एक बार आपकी सेवा का मौका दे. !
.......................................ज्योतिष मेरी नजर में,
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सोजन्य से...
ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी
(लाल किताब विशेषज्ञ)
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