.....क्या वाकई हनुमान जी बन्दर थे?
.....क्या वाकई में उनकी पूंछ थी ?
नमस्कार दोस्तों,
मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषज्ञ) आप सभी को कुछ
शास्त्रो से जुडी बाते बताना चाह रहा हूँ गौर कीजियेगा। हो सके तो पसंद
आने पर लाइक - कॉमेंट्स देकर आशीर्वाद जरूर दे।
ऋषि दयानन्द कहते है की असत्य का त्याग और सत्य को धारण करना ही धर्म है।
वाल्मीकि रामायण जो की रामजी के जिवन का मुल व प्रमाणीक ग्रंथ है बाकी सभी
रामायण वो उसी को आधार बनाकर के लिखी गई है चाहे वह लसिदासजी कदम्बजी या
कीसी और अन्य विद्वान के द्वारा लिखी गई हो।
दोस्तों, वाल्मीक रामायण
के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम चन्द्रजी महाराज के पश्चात परम बलशाली
वीर शिरोमणि हनुमानजी का नाम स्मरण किया जाता हैं। हनुमानजी का जब हम चित्र
देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में चित्रित किया गया हैं
जिनके पूंछ भी हैं।
हमारे मन में प्रश्न भी उठते हैं की इस प्रश्न का
उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम लेकर
परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।
दोस्तों, आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते हैं - सर्वप्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते हैं।
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🌑 दोस्तों, सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते हैं की
वानर का अर्थ होता हैं बन्दर परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर
शब्द का अर्थ होता हैं वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला।
जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को
गिरिजन कहते हैं उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते हैं। वानर शब्द
से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।
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दोस्तों, सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते हैं उसमें उनकी पूंछ
दिखाई देती हैं, परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती?
नर-मादा
का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह
स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना
मात्र हैं।
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🌑 किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्रजी
महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में
परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्रजी लक्ष्मण से बोले -
..........न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
..........न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ||
४-३-२८ “ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं हैं
तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत
बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार
अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध
शब्द का उच्चारण नहीं किया हैं। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से
उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती हैं”।
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दोस्तों, सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों
के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले हनुमानजी सोचते हैं
“यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा
का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी।
मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों
से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर
विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ करदेगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान
परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।” इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की
हनुमान जी चारों वेद, व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी
थे।
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🌑 हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद
का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में
किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग
बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से
युक्त मानते थे।
बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना,
सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य कोठीक ठीक समझना, विज्ञान व
तत्वज्ञान।
चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद राजनीति के
चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता,
दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता,
शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता। भला इतने गुणों से
सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकता हैं?
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🌑 अंगद की माता तारा
के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था की “सुषेन
की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के
उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण हैं। जिस कार्य को यह अच्छा
बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं
होता।”
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🌑 दोस्तों, किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम
संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार
राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये। किष्किन्धा कांड (26/10)
में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।
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🌑 जहाँ तक जटायु का प्रश्न हैं वह गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय
रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ –
हे आर्य जटायु !
यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा हैं ।
सन्दर्भ-अरण्यक 49/38
......जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथवत् |
......अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || ४९-३८
......कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
......सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम|| ६८-६
यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं। मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी
(लाल किताब विशेषज्ञ) आप सभी को बताना चाहता हूँ की यह शब्द किसी
पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। रावण को अपना परिचय देते हुए
जटायु ने कहा -मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु हैं
सन्दर्भ - अरण्यक 50/4
......(जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः | 50/4)
यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य का राजा नहीं हो सकते।
इन प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की जटायु पक्षी नहीं था अपितु एक मनुष्य था जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में वास कर रहा था।
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🌑 दोस्तों, जहाँ तक जाम्बवान के रीछ होने का प्रश्न हैं। जब युद्ध में
राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे तब किसी को भी उस संकट
से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के
पास गये तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश
नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था।
सन्दर्भ युद्ध कांड सर्ग-74/31-34 आपत काल में
बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता हैं और युद्ध जैसे काल
में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से,पूछा जाता
हैं। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही
नहीं हैं दूसरे बुद्धि से परे की बात हैं।
इन सब वर्णन और विवरणों को
बुद्धि पूर्वक पढने के पश्चात कौन मान सकता हैं की हनुमान, बालि, सुग्रीव
आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य न होकर बन्दर आदि थे। यह केवल मात्र एक
कल्पना हैं और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन हैं।
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मैं ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी (लाल किताब विशेषज्ञ) आप सभी को बताना
चाहता हूँ की कुछ मुर्ख हनुमानजी आदी को बन्दर सिद्ध करने के लिऐ "डार्विन
के सिद्धांत" का भी तर्क देते है, तो उन अक्ल के अन्धो को बता देना चाहता
हु की "डार्विन के सिद्धांत" को उसके ही देश मे नही पडाया जात वहा भी उसे
कोरी गप्प करते है । डार्विन के सिद्धांत के बारे मे अधीक जानने
हेतु,नजदीकी आर्य समाज मे जाकर के "वेदीक समप्ती" नामक पुस्तक पड लेना
जिसमे "भारत की विश्व भर को विज्ञान के श्रेत्र मे दी गई देन" व डार्विन
जेसे गप्पेबाज वेज्ञानिको के गप्पो की विस्तार से पोल-खोल रखी है।
अगर
भारतिय जनमानस मे फेले अंधविश्वास, पाखंढ व मिथको की पोल-खोल करके पुन:
धरति पर "वेदीक युग" "रामराज्य" की स्थापना करने के फलस्वरूप समाज मुजे भी
ऋषि दयानन्द की तरह 16-16 बार जहर देकर के मारना चाहेगी तो मे मरना स्वीकार
करूगा लेकीन अपने "वेदीक धर्म"को मिटने नही दुंगा ।
|| सत्य सनातन वेदीक धर्म की जय ||
लोट चलो वेदो की ओर —
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.......................................ज्योतिष मेरी नजर में,
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ज्योतिषाचार्य मनोज साहू जी
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